"किसान आंदोलन' सरकार ने गंभीरता से लिए है।

किसान आंदोलन में आजाद मैदान जाकर मंत्रियों ने किसनों का समाधान किया. राज्य के ३५००० से ज्यादा किसानों का जनसागर मुंबई में उमड़ पड़ा था. यह किसान मोर्चा कृर्षि एवं ग्रामीण इलाकों की हुकार थी जो सत्ताधीशों के दिलों को दहलाने वाली साबित हुई. विपक्ष ने भी इस मौके को भुनाया. किसानों की न्यायपूर्ण मांगों को सर्वदलीय समर्थन हासिल था. राकां, कांग्रेस, मनसे, शेकाप का किसन मोर्चे को पूर्ण समर्थन रहासरकारी कर्मचारियों ने भी किसान आंदोलन को समर्थन दिया. सरकार लिए यह एक बड़ी चुनौती रही जिससे स्वाभविक रूप से उसका सिरदर्द बढ़ा. किसानों की मांगों की सतत उपेक्षा से उनका असंतोष चरम पर जा पाहुंचा था. अब भी देश में यह भावना बलवती होती जा रही है कि सरकार का ध्यान सिर्फ उद्योगपतियों पर है. वह उन्हीं के हित में नीतियां बनाती है और भरपूर वित्तीय सहायता उपलब्ध कराती है.


इनमें ऐसे भी लोग हैं जो सरकारी बैंकों को हजारों करोड़ का चुना लगाकर विदेश भाग जाते हैं. इसके विपरीत किसान के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता हैवह अभाव में जीने मरने को मजबर हैं. सरकार की किसान हित में गई घोषणाओं में दिखावा ज्यादा होता है. जमीनी हकीकत यह है कि किसान बुरी तरह पीड़ित हैं. इसी वजह से उन्हें सड़कों पर आना पड़ा. राज्य सरकार इस नाजुक स्थिति को सूझबूझ के साथ निपटाने में सफल रहीजल संपदा मंत्री गिरीश महाजन ने विक्रोली जाकर किसानों का स्वागत किया तथा किसान नेताओं को बातचीत का न्योता दिया. यह पहल पूर्व में भी की जा सकती थी परंतु न जाने क्यों सरकार तभी हड़बड़ाकर जागती है जब स्थिति गंभीर होती नजर आने लगती है.


यह प्यास लगने पर कुआं खोदने जैसी बात है. स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को पुरी तरह लागू करने के साथ ही ऐसा माहौल बनाया जाए जिसमें किसान स्वयं को लाचौर, असहाय व उपेक्षित् महसूस न करें, किसान आत्महत्या की घटनाएं प्रगतिशील महाराष्ट्र के लिए कलंक रहीं हैं.